एक गुरु ने अपने एक शिष्य को भगवान शिव की महिमा के बारे में बताया। शिष्य को समझाया विधि पूर्वक कैसे भगवान शिव की आराधना करनी है ।शिष्य ने गुरु से प्रश्न किया क्या सच में हमें भगवान शिव की आराधना से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। गुरु ने कहा बिल्कुल हमें भगवान शिव की आराधना से भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है। शिष्य को गुरु की बात पर विश्वास तो नहीं हुआ, परंतु शिष्य ने हर रोज भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी। 
शिष्य हर रोज भगवान शिव की पूजा करता और शिवलिंग को जल चढ़ा था। वह हर रोज ओम नमः शिवाय का जाप भी करता। वह अपनी तरफ से भगवान शिव को भक्ति से विवश कर रहा था। कि वह उसके सामने प्रकट हो और उसको आशीर्वाद दें ,कुछ दिनों तक तो ऐसे ही चलता रहा परंतु, कुछ दिनों बाद उसको लगा शिवजी नहीं आने वाले और ना ही उनकी पूजा का कोई लाभ उसको मिलने वाला है । बकोई आशीर्वाद नहीं मिलने वाला उसे भगवान शिव पर ही क्रोध आने लगा ,यह सत्य भी है ।श्रीमद भगवत गीता के दूसरे अध्याय में श्रीकृष्ण बताते हैं इच्छा पूरी ना होने पर क्रोध का जन्म होता है। और यही हुआ शिष्य की इच्छा पूरी नही हुई तो क्रोध का जन्म हुआ, और क्रोध में उसकी बुद्धि भी मारी गई ,उस प्राणी ने यह सोचा भगवान शिव को मजा चख आएगा। वह भगवान शिव को सबक सिखाएगा ।ऐसा करने के लिए भगवान विष्णु की मूर्ति लेकर आया ।
उसने भगवान विष्णु की मूर्ति को भगवान शिव की मूर्ति के ठीक सामने रख दिया। अब उसने भगवान विष्णु की आराधना आरंभ कर दी और यह सब भगवान शिव को मनाने के लिए उसने विष्णु भगवान से कहना शुरू कर दिया ।हे विष्णु जी तुम ही परम परमात्मा हो शिव भगवान नहीं है ।तुम ही सत्य हो और अब जाकर में सच्चे परमात्मा की शरण में आया हूं। अब तक तो मैं गलत भगवान को ही पूजता रहा ।और मैं जानता हूं आप ही मुझे आशीर्वाद देंगे, अब कुछ दिन तक ऐसा करने से तो ,भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिला और ना ही भगवान शिव का अब इच्छा पूरी नहीं हुई और क्रोध और गहरा हो गया ।और इस व्यक्ति की बुद्धि पर बेली का पर्दा और बढ़ गया ।और इस तुच्छ प्राणी नहीं कुछ अगरबत्तियां भगवान विष्णु के आगे चलाएं अगरबत्ती का धुआं फैलना स्वाभाविक था। और वह तो भगवान शिव की मूरत के आगे जाना भी स्वाभाविक था। यह बात इस व्यक्ति को जरा हजम नहीं हुई उसका क्रोध और बढ़ गया। उसने क्या किया अपनी मूर्खता दिखाते हुए भगवान शिव की मूरत की नाक पर ही हाथ रख दिया। और मुरैना को जोर लगाकर खींचने लगा और कहने लगा, शिव असली भगवान के लिए है ।और वह भगवान विष्णु है। ना कि भगवान शिव खबरदार जो तुमने मेरी जुलाई अगरबत्ती की खुशबू को अपनी नाक से महसूस किया ,उसने भगवान शिव की प्रतिमा को
शिष्य हर रोज भगवान शिव की पूजा करता और शिवलिंग को जल चढ़ा था। वह हर रोज ओम नमः शिवाय का जाप भी करता। वह अपनी तरफ से भगवान शिव को भक्ति से विवश कर रहा था। कि वह उसके सामने प्रकट हो और उसको आशीर्वाद दें ,कुछ दिनों तक तो ऐसे ही चलता रहा परंतु, कुछ दिनों बाद उसको लगा शिवजी नहीं आने वाले और ना ही उनकी पूजा का कोई लाभ उसको मिलने वाला है । बकोई आशीर्वाद नहीं मिलने वाला उसे भगवान शिव पर ही क्रोध आने लगा ,यह सत्य भी है ।श्रीमद भगवत गीता के दूसरे अध्याय में श्रीकृष्ण बताते हैं इच्छा पूरी ना होने पर क्रोध का जन्म होता है। और यही हुआ शिष्य की इच्छा पूरी नही हुई तो क्रोध का जन्म हुआ, और क्रोध में उसकी बुद्धि भी मारी गई ,उस प्राणी ने यह सोचा भगवान शिव को मजा चख आएगा। वह भगवान शिव को सबक सिखाएगा ।ऐसा करने के लिए भगवान विष्णु की मूर्ति लेकर आया ।
उसने भगवान विष्णु की मूर्ति को भगवान शिव की मूर्ति के ठीक सामने रख दिया। अब उसने भगवान विष्णु की आराधना आरंभ कर दी और यह सब भगवान शिव को मनाने के लिए उसने विष्णु भगवान से कहना शुरू कर दिया ।हे विष्णु जी तुम ही परम परमात्मा हो शिव भगवान नहीं है ।तुम ही सत्य हो और अब जाकर में सच्चे परमात्मा की शरण में आया हूं। अब तक तो मैं गलत भगवान को ही पूजता रहा ।और मैं जानता हूं आप ही मुझे आशीर्वाद देंगे, अब कुछ दिन तक ऐसा करने से तो ,भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिला और ना ही भगवान शिव का अब इच्छा पूरी नहीं हुई और क्रोध और गहरा हो गया ।और इस व्यक्ति की बुद्धि पर बेली का पर्दा और बढ़ गया ।और इस तुच्छ प्राणी नहीं कुछ अगरबत्तियां भगवान विष्णु के आगे चलाएं अगरबत्ती का धुआं फैलना स्वाभाविक था। और वह तो भगवान शिव की मूरत के आगे जाना भी स्वाभाविक था। यह बात इस व्यक्ति को जरा हजम नहीं हुई उसका क्रोध और बढ़ गया। उसने क्या किया अपनी मूर्खता दिखाते हुए भगवान शिव की मूरत की नाक पर ही हाथ रख दिया। और मुरैना को जोर लगाकर खींचने लगा और कहने लगा, शिव असली भगवान के लिए है ।और वह भगवान विष्णु है। ना कि भगवान शिव खबरदार जो तुमने मेरी जुलाई अगरबत्ती की खुशबू को अपनी नाक से महसूस किया ,उसने भगवान शिव की प्रतिमा को
जोर से पकड़ा था, ताकि भगवान शिव इसे ना महसूस कर सकें ,ओर इतनी जोर से दबा रहा था, कि उसकी आंखें बंद होगयी ।कुछ ही समय बाद इस व्यक्ति ने महसूस किया उसने सच की नाक पकड़ी हुई है। ना तो पत्थर की बनी,आंखें खोली तो स्वयं भगवान शिव को अपने सामने पाया ।भगवान शिव को अपने सामने देखकर इस व्यक्ति के पांव के नीचे से जमीन खिसक गई ।उसको कुछ समझ नहीं आया, क्या हो गया है पर एक बात जरूर हुई ,उसको अपनी गलती का एहसास हुआ ।उसको समझ आ गया उसने बहुत बड़ी गलती की है ।भगवान शिव का अपमान करके उसने ज्यादा समय ना गवाया और भगवान शिव के चरणों में पढ़कर  भीख मांगने लगा। और कहने लगा मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई है क्षमा करो महादेव । अपनी गलती का पश्चाताप करके माफी मांगी।


 
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