Thursday, 26 December 2019

माता दुर्गा द्वारा ब्रह्मा को श्राप देना

माता दुर्गा द्वारा ब्रह्मा को श्राप देना

जब माता ने ब्रह्मा से पूछा क्या तुमने पिता के दर्शन किये? ब्रह्मा ने कहा हां मां मुझे पिता के दर्शन हुए। दुर्गा ने कहा साक्षी बता, तब ब्रह्मा ने कहा इन दोनों के समक्ष दर्शन हुए। देवी दुर्गा ने उन दोनों लड़कियों से पूछा क्या तुम्हारे सामने ब्रह्मा को दर्शन हुए? तब दोनों ने कहा कि हां हमने अपनी आंखों से देखा है। हमारे सामने उन्हें दर्शन हुए ,तब भवानी प्रकृति को संचय हुआ कि मुझे तो ब्रह्म( काल )ने कहा था कि मैं किसी को दर्शन नहीं दूंगा।
चाहे कुछ हो जाए परंतु यह कहते हैं, कि दर्शन हुए तब दुर्गा ने ध्यान लगाकर और कॉल जोत निरंजन से पूछा, कि यह क्या कहानी है। जोत निरंजन ने कहा कि यह तो झूठ बोल रहे हैं ।तब माता ने कहा तुम झूठ बोल रहे हो आकाशवाणी हुई है। कि उन्होंने किसी को दर्शन नहीं दिए यह बात सुनकर ब्रह्मा ने कहा कि माताजी में सोंगध खाकर पिता की तलाश करने गया था। परंतु पिता के दर्शन नहीं हुए आपके पास आने में शर्म लग रही थी। इसलिए हमने झूठ बोल दिया ।तब माता दुर्गा ने कहा कि मैं तुम्हें शराब देती हूं।
 ब्रह्मा को श्राप:- तेरी पूजा जग में नहीं होगी। आगे तेरे वंशज होंगे वे बहुत पाखंड होंगे झूठी बात बनाकर जग्ग ठगी ऊपर से तो कर्मकांड करते दिखाई देंगे ।मगर अंदर से विकार करेंगे कथा पुरानो को पढ़कर सुनाया करेंगे। स्वयं को ज्ञान नहीं होगा की सद ग्रंथों में वास्तविक क्या है। फिर भी मानवास तथा धन प्राप्ति के लिए गुरु बनकर अनुयायियों को लोक वेद शास्त्र विरुद्ध अंत कथा सुनाया करेंगे। देवी देवताओं की पूजा करके तथा करवा के दूसरों की निंदा करके कष्ट पर कष्ट उठाएंगे। जो उनके अनुयाई होंगे उनको परमार्थ नहीं बताएंगे दक्षिणा के लिए जगत को गुमराह करते रहेंगे। अपने आप को सबसे श्रेष्ठ मानेंगे दूसरों को नीचा समझेंगे। जब माता के मुख से यह सुना तो ब्रह्मा मूर्छित होकर जमीन पर गिर गया। बहुत समय उपरांत होश आया।
गायत्री को श्राप:- तेरे इस प्रकार घिनौनी हरकत के कारण तेरे कई बैल पति होंगे। और तू मृत्यु लोक में गाय बनेगी।
सावित्री को श्राप:- तेरी जगह गंदगी में होगी ।तेरे फूलों को कोई पूजा में नहीं लेगा। इसी झूठी गवाही के कारण तुझे यह नरक भोगना पड़ेगा। तेरा नाम कीवडा केतकी होगा हरियाणा में कुसौंधी कहते हैं। यह गंदगी को ऑडियो वाली जगह में होती है।
इस प्रकार तीनों को श्राप देकर माता भवानी दुर्गा बहुत पछताई। इस प्रकार पहले तो जीव बिना सोचे मन काल (निरंजन) के प्रभाव से गलत कार्य कर देता है। परंतु जब शरद पूर्व सांसद के प्रभाव से उसे ज्ञात होता है तो पीछे पछताना पड़ता है। जिस प्रकार माता पिता अपने बच्चों को छोटी सी गलती के कारण  क्रोध वश होकर, परंतु बाद में बहुत पछताते हैं। यही प्रक्रिया मन काल (निरंजन) के प्रभाव से सर्व जीवो में क्रिया वान हो रही है। हां एक बात विशेष है कि निरंजन काल ब्रह्म ने भी अपना कानून बना रखा है। कि यदि कोई जीव किसी दुर्बल जीव को सताएगा तो उसे उसका बदला देना पड़ेगा। जब आदि भवानी दुर्गा ने ब्रह्म गायत्री व सावित्री को श्राप दिया तो (अलख निरंजन) काल ब्रह्म ने कहा कि यह दुर्ग यह आपने अच्छा नहीं किया। अब मैं निरंजन आप को श्राप देता हूं। कि द्वापर युग में तेरे भी पांच पति होगी अर्थात द्रोपति ही आदि माया का अवतार होगी। जब यह आकाशवाणी सुनी तो आदि माया ने कहा जोत निरंजन काल मैं तेरे बस में पड़ी हूं ।जो चाहे सो कर ले।
सृष्टि रचना में दुर्गा जी के अन्य नामों का बार-बार लिखने में का उद्देश्य है। कि पुराना गीत आदत है वेदों में प्रमाण देखते समय भर्म उत्पन्न नहीं होगा। जब जैसे गीता अध्याय नंबर 14 लोक नंबर 34 में काल ब्रह्म ने कहा कि प्रकृति तो गर्भधारण करने वाली सब जीवो की माता है। मैं उसके गर्भ में बीज स्थापित करने वाला पिता हूं। ईसलोक 4 में कहा गया है। कि प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुण जीवात्मा को कर्मों के बंधन में बांधते हैं। इस प्रकार में प्रकृति तो दुर्गा है। तथा तीनों गुण तीनों देवता यानी रज गुण ब्रह्मा, सद्ग गुण  विष्णु ,तम गुण शिव के सांकेतिक नाम है।

Sunday, 22 December 2019

(तत्वज्ञान ) श्री ब्रह्मा जी ,श्री विष्णु जी ,श्री शिव जी ,की उत्पत्ति का रहस्य।

श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी , श्री शिन्व जी की, _त्उत्पत्ति 

काल (ब्राह्) ने (प्रकृति) दुर्गा से कहा कि अब मेरा कौन क्या बिगड़ेगा? मनमानी हरकत करूंगा। प्रकृति( दुगा )ने फिर प्रार्थना कि की आप कुछ शर्म करो।प्रथम तो आप मेरे बड़े भाई हो, क्योंकि उस पूर्ण परमात्मा कबीर के वचन शक्ति से बने अंडे से आप की उत्पत्ति हुई है । तथा बाद में मेरी उत्पत्ति उसी परमेश्वर के वचन शक्ति से उई है। दूसरे मैं आपके पेट से बाहर निकली हूं ,मैं आपकी बेटी ,तथा आप मेरे पिता हुए। इस पवित्र नातो मैं बिगाड़ करना महापाप होगा। मेरे पास पिता की प्रदान की हुई  शब्द शक्ति है, जितने प्राणी आप चाहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूंगी। जोत निरंजन ने दुर्गा की एक भी विनय नहीं सुनी। तथा कहा कि मुझे जो सजा मिलनी थी। मिल गई मुझे सतलोक से निष्कासित कर दिया। अब मनमानी करूंगा यह कह कर काल पुरुष ने प्रकृति के साथ जबरदस्ती शादी की ।तथा तीन पुत्र रज गुण ब्रह्मा जी, सद्गुण विष्णु जी, तथा तम गुण शिव जी, की उत्पत्ति की।
जवान होने तक तीनों पुत्रों को दुर्गा के द्वारा अचेत करा देता है। फिर युवा होने पर श्री ब्रह्मा जी को कमल के फूल पर, श्री विष्णु जी को शेषनाग की सैया पर, तथा श्री शिव जी को कैलाश पर्वत पर, सचेत कर देता है। तत्पश्चात (प्रकृति ) दुर्गा द्वारा इन तीनों का विवाह कर दिया जाता है । तथा एक ब्रह्मांड में तीन लोक स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक ,पाताल लोक, में एक एक  विभाग के मंत्री नियुक्त कर देता है। जैसे श्री ब्रह्मा जी को रजगुण विभाग ,तथा विष्णु जी को सतगुण  विभाग, तथा शिव शंकर जी को तमोगुण विभाग का ,तथा स्वयं  गुप्त महा ब्रह्मा ,महा विष्णु ,महा शिव ,रूप में मुख्यमंत्री पद को संभालता हैः। एक ब्रह्मांड में एक ब्रह्मलोक की रचना की है ।
उसी में तीन गुप्त स्थान बनाए हैं, एक रजोगुण प्रदान स्थान, जहां पर यह काल स्वयं ब्रह्मा मुख्यमंत्री रूप में रहता है ।तथा अपनी पत्नी दुर्गा को महा सावित्री रूप में रखता है। इन दोनों के सहयोग से जो पुत्र ईस स्थान पर उत्पन्न होता है ,वह स्वता ही रजोगुण बन जाता है ।
दूसरा स्थान सतोगुण प्रधान स्थान बनाया है। वहां पर यह काल पुरुष विष्णु रूप बनकर रहता है ।तथा अपनी पत्नी दुर्गा को लक्ष्मी रूप में रखकर जो पुत्र उत्पन्न करता है ।उसका नाम विष्णु रखता है ,वह बालक सतोगुण युक्त होता है।
तीसरा इसी काल ने वहीं पर एक तमोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया उसमें यह स्वयं सदाशिव रूप बनाकर रहता है ।तथा अपनी पत्नी दुर्गा को महा पार्वती रूप में रखता है। इन दोनों के पति पत्नी व्यवहार से जो पुत्र उत्पन्न होता है उसका नाम शिव रख देते हैं ।तथा तमोगुण युक्त कर देते हैं।
(प्रमाण के लिए देखें पवित्र शिवपुराण ,बिंदेश्वर संहिता पृष्ठ नंबर 24 ,26 जिसमें ब्रह्मा विष्णु तथा महेश से अन्य सदस्य है ।तथा रूद्र संहिता अध्याय 6 तथा 7,9 पृष्ठ 100 से 150 ,110 पर अनुवाद करता ,श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित है।)फिर इन्हीं को धोखे में रखकर अपने खाने के लिए जिवो की उत्पत्ति  श्री ब्रह्मा जी द्वारा  एक दूसरे को मोह माया में रखकर काल जाल में रखना। श्री विष्णु जी से पालन तथा शिवजी से संहार ।
क्योंकि काल पुरुष को श्राप वस एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सूक्ष्म शरीर से मैल निकालकर खाना होता है ।उसके लिए 21 ब्रह्मांड में एक तप्तशीला है, जो हमेशा गर्म रहती है। उस पर गर्म करके मैल पिघलाकर खाता है। जिव मरते नहीं है। परंतु कष्ट असहनिया होता है । फिर प्राणियों को कर्म आधार पर अन्य शरीर प्रदान करता है। जो कार्य श्री शिव जी द्वारा करवाता है ।जैसे किसी मकान में तीन कमरे बने हो, एक कमरे में अश्लील चित्र लगे हो, उस कमरे में जाते ही मन में वैसे ही मलिन विचार उत्पन्न हो जाते हैं। दूसरे कमरे में साधु संतो भक्तों के चित्र लगे हो तो मन में अच्छे विचार प्रभु का चिंतन ही बना रहता है। तीसरे कमरे में देशभक्तों वह शहीदों के चित्र लगे होते हैं ,तो मन में वैसे ही जोशीले विचार उत्पन्न हो जाते हैं ।ठीक इसी प्रकार (ब्रह्मा) काल ने अपने सूझ -बूझ से उपरोक्तअनुसार तीन गुन प्रधान स्थानों की रचना की है।
अधिक जानकारी या आगे पीछे का पढ़ने के लिए उल्लेख ज्ञानसागर ब्लॉक या www.dkmalviyaddresblagcom सर्च करें और इस गूढ़ रहस्य को ग्रहण करें। भोली आत्माओ जय बंदी छोड़ की जय।

Friday, 20 December 2019

🙏🙏 हैप्पी न्यू ईयर 2020 🙏🙏हम काल के लोक में कैसे आए 84 लाख योनि भुगतने🙏🙏

 नए वर्ष 2020 की आप सभी को हार्दिक शुभकामना। ''जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा है। हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई ,धर्म नहीं कोई न्यारा है,,।
इस  कॉल  परमेश्वर के लोक में  प्रत्येक प्राणी ( जीवात्मा)  किसी न किसी कारण  परेशान है। कोई  बीमारी के कारण दुखी,  कोई जमीन जायदाद के कारण दुखी है,  कोई शादी ब्याह के कारण दुखी है , इस संसार में और न जाने किन किन कारणों से प्रत्येक प्राणी दुखी है। 
यह दुख का  एक ही कारण है। शास्त्र विरुद्ध साधना  करना। इससे बचने के लिए  आप  सन 2020 से  शास्त्र अनुकूल साधना  करने का प्रण ले,  और  आज ही  " शास्त्र अनुकूल साधना क्या है " को सर्च करें  और इस पर अमल करें ।इसी का एक छोटा सा उदाहरण जिव इस संसार में कैसे आए ।जीस समय सतलोक मे  क्षर पुरूष (जोत निरंजन) एक पैर पर खड़ा होकर तप कर रहा था ।तब हम सभी आत्माएं इस क्षर पुरुष पर आकर्षित हो गए । जैसे जवान बच्चे ,अभिनेता व अभिनेत्री पर आसक्त हो जाते हैं ।लेना एक न देना दो ।व्यर्थ में चाहने लग जाते हैं। वे अपनी कमाई करने के लिए नाचते कूदते हैं। युवा बच्चे उन्हें देखकर अपना धन नष्ट करते हैं। ठीक इसी प्रकार हम अपने परमपिता सत्पुरुष को छोड़कर काल पुरुष (क्षर पुरूष) को हृदय से चाहने लगे ,जो परमेश्वर हमें सर्व सुख सुविधा दे रहा था। उससे मुंह मोड़ कर इस नकली ड्रामा करने वाले काल ब्रह्म को चाहने लगे ।सतगुरु जी ने बीच-बीच में बहुत बार आकाशवाणी कि ।की बच्चों  इस काल के क्रिया को मत देखो मस्त रहो। हम ऊपर से तो सावधान हो गए परंतु अंदर से चाहते रहे। परमात्मा तो अंतर्यामी है ।उन्होंने जान लिया कि यहां रखने के योग्य नहीं है ।काल पुरुष ने जब दो बार जप करके फल प्राप्त कर लिया तब उसने सोचा। कि आब कुछ जीवात्मा भी मेरे साथ रहनी चाहिए। मेरा अकेले का दिल नहीं लगेगा इसीलिए जीवात्मा प्राप्ति के लिए तप करना शुरू किया ।
64 युग तक तप करने के पश्चात, परमेश्वर जी ने पूछा, कि जोत निरंजन अब किस लिए तप कर रहे हो ।क्षर पुरुष ने कहा कि कुछ आत्माएं प्रदान करो ।मेरा अकेले का दिल नहीं लगता सत्पुरुष ने कहा कि तेरे तप के बदले में और ब्रह्मांड दे सकता हूं। परंतु अपनी आत्माएं नहीं दूंगा । यह मेरे शरीर से उत्पन्न हुई है ।हां यदि  स्वयं जाना चाहते हैं। तो वह जा सकते हैं। इस प्रकार कबीर परमेश्वर के वचन सुनकर जोत निरंजन हमारे पास आया ।हम सभी हंस आत्माएं पहले से ही उस पर आसख्त थी ।हम उसे चारों तरफ से घेर कर खड़े हो गए जोत निरंजन ने कहा कि मैंने पिताजी से अलग 21 ब्रह्मांड प्राप्त किए हैं ।वहां नाना प्रकार के रमणीय स्थल बनाए हैं। क्या आप मेरे साथ चलोगे हम सभी हंसो ने जो आज 21 ब्रम्हांड में परेशान हैं ।कहां कि हम तैयार है यदि  पिताजी आज्ञा दे तब क्षरपुरुष (काल) पूर्ण ब्रह्म ( कबीर परमेश्वर) के पास गया तथा सर्वर वार्ता की तब कबीर परमेश्वर ने कहा कि मेरे सामने स्वीकृत देने वाले को आज्ञा दूंगा ।क्षर पुरुष तथा परम अक्षर पुरुष दोनों हम सभी आत्माओं के पास आए ।पुरुष ने कहा कि जो आत्माएं ब्रह्म (कााल)के साथ जाना चाहती है हाथ ऊपर करके स्वीकृति दे अपने पिता के सामने किसी की हिम्मत नहीं हुई । किसी ने स्वीकृति नहीं दी परंतु कुछ समय तक सन्नाटा छाया रहा। तत्पश्चात एक हंस आत्मा ने साहस किया तथा कहा कि पिताजी मैं जाना चाहती हूं ।फिर तो उसकी देखा देखी हम सभी आत्माओं ने स्वीकृति दे दी ।परमेश्वर कबीर जी ने ज्योति निरंजन (क्षर पुरूष)से कहा कि आप अपने स्थान पर जाओ जिन्होंने तेरे साथ जाने की स्वीकृति दी है ।मैं उस सर्व आत्माओं को आप के पास भेज दूंगा जोत निरंजन अपने 21 ब्रह्मांडो में चला गया ।उस समय तक यह 21 ब्रह्मांड सतलोक में थे।
तत्पश्चात पूर्ण ब्रह्म ने सर्वप्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को लड़की  का रूप दिया परंतु स्त्री इंद्री नहीं रखी ।तथा सर्व आत्माओं को जिन्होंने निरंजन के साथ जाने की सहमति दी थी। उस लड़की के शरीर में प्रवेश करा दिया ।तथा उसका नाम दुर्गा पड़ा। तथा सत्पुरुष ने कहा कि पुत्री मैंने तेरे को शब्द शक्ति प्रदान कर दी है। जितने जीव ब्रह्म कहे आप अपनी शब्द शक्ति से उत्पन्न कर देना पूर्ण ब्रह्म कबीर देव ने अपने पुत्र सहज दास के द्वारा (प्रकृति ) दुर्गा को सर पुरुष के पास भिजवा दिया ।सहजदास जी ने जोत निरंजन को बताया कि पिताजी ने ईस दुर्गा बहन के शरीर में उन सब आत्माओं को प्रवेश कर दिया है। जिन्होंने आपके साथ जाने की सहमति व्यक्त की थी ।उसको वचन शक्ति प्रदान की है ।और जीतने जीव चाहूंगी ।प्रकृति अपने शब्द से उत्पन्न कर देगी। यह कह कर शहज दास अपने देश में वापस आ गया।
युवा होने के कारण लड़की का रंग रूप निखरा हुआ था ब्रह्म (काल) के अंदर विषय वासना उत्पन्न हो गई ।तथा (प्रकृति ) दुर्गा देवी के साथ अभद्र गतिविधि प्रारंभ की ।तथा दुर्गा ने कहा कि जोत निरंजन मेरे पास पिताजी की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है ।आप जितने प्राणी कहोगे मैं वचन शक्ति से उत्पन्न कर दूंगी। आप मिथुन परंपरा शुरु मत करो। आप भी उसी पिता के शब्द के अंडे से उत्पन्न हुए हो, तथा मैं भी उसी परम पिता के वचन से ही बाद में उत्पन्न हुई हूं ।आप मेरे बड़े भाई हो ।बहन भाई का यह योग महापाप का कारण बनेगा ।परंतु ज्योति निरंजन ने प्रकृति देवी की एक भी प्रार्थना नहीं सुनी ,तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखूनों से स्त्री इंद्र प्रकृति को लगा दी ।तथा हठपूर्व मैथुन करने की ठानी ।उसी समय दुर्गा ने अपनी  रक्षा के लिए कोई और चारा ना देख कर सूक्षम रूप बनाया ।तथा जोत निरंजन के खुले मुख के द्वारा पेट में प्रवेश करके पूर्ण ब्रह्म कबीर देव को रक्षा के लिए याचना की। उसी समय परमेश्वर कबीर देव अपने पुत्र का रूप बनाकर वहीं प्रकट हुए ,तथा कन्या को ब्रह्म(काल) के उधर से बाहर निकाला ।कहा कि जोत निरंजन आज से तेरा नाम काल होगा। तेरे जन्म मृत्यु होंगे। इसीलिए तेरा नाम क्षर पुरुष होगा ।तथा एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों को प्रतिदिन खाया करेगा ।व सवा लाख उत्पन्न किया करेगा ।आप दोनों को यहा से प्रमाण सहित निष्कासित किया जाता है ।इतना कहते ही 21 ब्रह्मांड विमान की तरफ चल पड़े योगदास के दीप के पास से होते हुए सतलोक से 16 शंख कोस की दूरी पर आकर रुक गए
**विशेष विवरण:-  अब तक तीन शक्तियों का विवरण आया है ।
*1 :-पूर्ण ब्रह्म जिसे अन्य महात्मा नामों से भी जाना जाता है जैसे :-सत्पुरुष ,अकाल पुरुष ,शब्द सरूपी राम ,परम अक्षर ब्रह्म ,पूर्व शादी यह पूर्ण ब्रह्म ,असंख्य ब्रह्मांड का स्वामी है ।तथा वास्तव में अविनाशी है।
*2:-  परब्रह्म, जिसे अक्षर पुरुष भी कहा जाता है ।यह वास्तव में अविनाशी नहीं है ।यह सात खंड ब्रह्मांडो  का स्वामी है ।
*3:- ब्रह्म ',जिसे ज्योति निरंजन, काल, क्षर पुरुष ,तथा धर्म राय ,आदि नामों से जाना जाता है ।जो केवल 21 ब्रह्मांड का स्वामी है ।अब आगे इसी ब्रह्मांड काल की सृष्टि के एक ब्राह्मण का परिचय दिया जाएगा। जिसमें 3 और नाम आपके पढ़ने के योग्य ब्रह्मा, विष्णु ,तथा शिव है ।
ब्रह्म तथा ब्रह्मा में भेद एक ब्राह्मणंड में बने सर्वोपरि स्थान पर ब्रह्म स्वयं तीन गुप्त स्थानों की रचना करके ब्रह्मा विष्णु तथा शिव रूप में रहता है ।अपनी पत्नी दुर्गा के सहयोग से तीन पुत्रों की उत्पत्ति करता है ।उनके नाम भी ब्रह्मा विष्णु तथा शिव रखता है। जो ब्रह्मा का पुत्र ब्रह्मा है ,वह एक ब्रह्मांड में केवल 3 लोग पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक ,पाताल लोक ,में 1 विभाग का मंत्री है इसे त्रिलोकी ब्रह्मा कहा जाता है ।तथा ब्रह्म जो ब्रह्मलोक में ब्रह्मा रूप में रहता है उसे महा ब्राह्म ब्रह्मलोक यह ब्रह्मा का जाता है  इसी ब्रह्म काल को सदा शिव महा शिव महा विष्णु भी कहते हैं 
श्री विष्णु पुराण में प्रायः चतुर्थांश अध्याय 1 जस्ट 230 ,231 पर श्री ब्रह्मा जी ने कहा जिस अजन्मा सर्व मैं विधाता परमेश्वर का आदि मध्य अंत स्वरूप स्वभाव और सर हम नहीं जान पाते ।इस बुक नंबर 83
जो मेरा रूप धारण कर संसार की रचना करता है ।स्थिति के समय जो रुद्र रूप से विश्व का ग्रास कर जाता है ।अनंत रूप से संपूर्ण जगत को धारण करता है। इस लोक 86
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Thursday, 19 December 2019

सफल जीवन के लिए चाणक्य के5 नियम

 विदुर महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक हैं ,और एक दासी पुत्र थे इसलिए उन्हें राजा बनने का अधिकार नहीं था । लेकिन अपनी इंटेलिजेंस और नॉलेज के दम पर भी हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री बने थे ।चाहे उन्हें राजा के विरोध का सामना करना पड़े इसलिए धर्मराज भी कहा जाता था ।और टाइम के अनुसार राज्य की भलाई और सफलता के लिए अपनी नीतियां बनाते थे ।और राजा धृतराष्ट्र के साथ और नीतियों पर चर्चा करते थे , सदा अच्छी चीजों का चिंतन करना चाहिए विदुर जी कहते हैं कि जिस चीज के बारे में हम अक्सर सोचते हैं ,बातें करते हैं ,और उसकी तरफ काम करते हैं ,उन्हीं चीजों को हम अपनी और आकर्षित कर लेते हैं जैसे अगर आप दिनभर अपनी किसी प्रॉब्लम के बारे में सोचते रहें और उस से रिलेटेड बातें करते रहे ,तो फिर आपकी प्रॉब्लम कम होने की जगह और बढ़ जाएगी ।वहीं अगर आप उस प्रॉब्लम के सलूशन के बारे में सोचें और उसका सलूशन खोजे तो फिर जल्दी आपकी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाएगी। अगर आप अमीर बनना चाहते हैं तो अमीरी के बारे में सोचें ।इस से रिलेटेड बुक्स पढ़ें यूट्यूब पर वीडियो देखें ऐसे लोगों की बातें सुने जो सक्सेसफुल तथा अमीर है ।और नॉलेज हासिल करें इसके ठीक ऑपोजिट अगर आप बस अपनी गरीबी को कोसते रहेंगे दुखी रहेंगे। और कंप्लेंट करते रहेंगे तो बदले में आपको वही चीज मिलेगी ।यानी कि गरीबी कहा जाए तो यहां हजारों वर्ष पहले ही लॉ ऑफ अट्रैक्शन के नियम को बता दिया था जिसे आजकल के बड़े-बड़े विद्वान और सक्सेसफुल लोग भी अपनी जिंदगी में हर जगह यूज करने की बात करते हैं। द्वारा लिखित विश्व प्रसिद्ध किताब द सीक्रेट पर आधारित है। अगर आप भी अपने लाइफ में सक्सेस चाहते हैं तो विदुर नीति के इस नियम को अपने जीवन में उतारें ।

2 :- दूसरा नियम जो अधिक सुने और कम बोले वह बुद्धिमान मनुष्य कहलाता है ।आप अगर दुनिया के सबसे सक्सेसफुल और इंटेलिजेंट लोगों की एक हैबिट पर ध्यान दें ,तो आप पाएंगे कि सारे ही सक्सेसफुल लोग अक्सर कम बोलते हैं। और सुनने पर ज्यादा ध्यान देते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि सक्सेसफुल लोग एटीट्यूड वाले होते हैं वह हर वक्त कुछ ना कुछ हर किसी से सीखते रहते हैं ।उन्हें पता होता है कि ज्यादा बोल कर वह बस वही बातें जान सकते हैं ।जो वह पहले से जानते हैं ,जबकि दूसरों की बातें ध्यान से सुनकर कुछ ऐसा नया सीख सकते हैं जिससे वे और ज्यादा सक्सेसफुल बन सकते हैं ।यही बात अपने नियम द्वारा बताने की कोशिश की है ।इसलिए अगर आपको और इंटेलिजेंट बनना है तो किसी से भी बात करते वक्त बोलने से ज्यादा आपको सुनने पर ध्यान देना चाहिए और विदुर नीति के इस प्रमुख नियम को अपने लाइफ में उतारना चाहिए ।
3  :- तीसरा नियम बुरे लोगों के साथ रहने पर बेकसूर लोग भी उन्हीं के समान सजा पाते हैं ।जैसे की सूखी लकड़ियों के साथ गीली भी जल जाती हैं। इसलिए बुरे लोगों के साथ मित्रता नहीं करनी चाहिए ।महा ज्ञानी विदुर के अनुसार यदि आप बुरे या अपराधी लोगों के साथ दोस्ती रखते हैं तो आप बिना किसी कारण के मुसीबत में फंस सकते हैं। जैसे कि अगर आपका दोस्त कोई अपराध किया गलत काम करता है तो आप उसके साथी और दोस्त हो तो भले ही आपने कोई गलती ना की हो लेकिन फिर भी आपको उसी के समान सजा मिल सकती है ।जैसे की सूखी लकड़ियों के साथ गीली लकड़िया भी जल जाती हैं चाहे स्कूल लाइफ हो प्रोफेशनल लाइफ हो या नॉर्मल डे टुडे लाइफ यह बात पूरी तरह से सही है ।जैसे कि कभी-कभी क्लास में एक बच्चे की गलती के कारण पूरी क्लास को सजा मिलती है। या फिर आपका कोई दोस्त राह चलते किसी लड़की या महिला को छोड़ दे ,और आप उस वक्त उसके साथ हो तथा वह महिला पुलिस में कंप्लेंट कर दे ।तो आपके दोस्त के साथ साथ आप पर भी पुलिस केस बन सकता है। भले ही आपने ऐसी कोई गलत हरकत ना की हो इसलिए हमेशा ऐसे लोगों या दोस्तों से दूर ही रहने की सलाह देते हैं ।जो कभी भी आपको किसी अनजान मुसीबत में डाल सकते हैं।
4:-  चौथा नियम जो काम करके अंतकाल में अकेले बैठकर पछताना पड़े उसे शुरू ही नहीं करना चाहिए। ऐसा होता है कि हम बिना सोचे समझे या किसी के बहकावे में कोई काम शुरू तो कर देते हैं ,लेकिन बाद में जाकर हमें पछताना पड़ता है ।कि हमने यह काम क्यों शुरू किया इसलिए हमेशा ऐसा काम करें जिसके बारे में आपको अच्छी नॉलेज हो और जिसमें आपको कुछ ना कुछ एक्सपीरियंस हो आप जो काम करना चाहते हैं ।उस से रिलेटेड आपके पास कोई नॉलेज या एक्सपीरियंस ना हो तो पहले उस काम की नॉलेज हासिल करें ऐसे लोगों से सीखे जो उसका महफिल में सक्सेसफुल है। बिना सोचे समझे किसी को देख कर कोई काम शुरु ना करें वरना आप उस काम में कभी भी सफल नहीं हो पाएंगे ।वहीं दूसरी और आपका इन्वेस्टमेंट टाइम तो बर्बाद होगा ही साथ ही साथ आपको अपने घर वालों दोस्तों और रिश्तेदारों के क्रिटिसिज्म का भी सामना करना पड़ेगा। इससे भी बुरी चीज यह हो सकती है कि इन सब चीजों के डर के कारण आप फिर कभी कोई नया काम शुरू ही ना करें। इन लोगों को नींद और भय क्रोध आलस्य तकदीर से काम करने की आदत इन 6 बुरी आदतों को हमेशा के लिए छोड़ देना चाहिए ।दुनिया में हर इंसान सक्सेसफुल होना चाहता है ,अमीर बनना चाहता है ,लेकिन ज्यादातर लोग अपनी किसी ना किसी बुरी आदत की वजह से गरीबी और बेरोजगारी के दलदल में फंसे रहते हैं ।यहां ऐसी ही 6 बुरी आदतों के बारे में बताया है ।जो हमें सक्सेसफुल और अमीर बनने से रोकते हैं ।जरूरत से ज्यादा नींद बोरियत गुस्सा वाला स्टेशन यानी कि किसी भी काम को देर से करने या टालमटोल करने की आदत अगर आप जरूरत से ज्यादा नींद से प्रेम करते हैं ।तो आपके सारे काम छूट जाएंगे और अगर सक्सेस से प्रेम करते हैं तो जरूरत से ज्यादा नींद और आलस को अपना दुश्मन बनाना ही पड़ेगा साथ ही साथ देरी से काम करने और हर जगह देर से पहुंचने के कारण मिलने वाली सफलता भी हाथों से निकल जा ती है। जैसे कि अगर आप किसी नौकरी के इंटरव्यू में देर से पहुंचते हैं तो क्या पता आप की देरी के कारण वह नौकरी किसी और को मिल जाए ।दूसरी तरफ टेनशन और गुस्सा इंसान की असफलता के सबसे प्रमुख कारण है। डर के कई रूप होते हैं जैसे चीजों के खोने का डर यही डर आपके अंदर घुसे और टेनश को भी जन्म देता है। विदुर नीति के अनुसार अगर आप अपनी इन छह बुरी आदतों को छोड़ देते हैं। तो आप भी सक्सेसफुल बन सकते हैं।   उसका तो कभी विश्वास किया ही नहीं जाना चाहिए पर जो विश्वास के योग्य नही है उस पर भी अधिक विश्वास नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि जब विश्वास टूटता है ।तो बहुत पीड़ा होती है दूसरों पर विश्वास करना एक बहुत ही इंपॉर्टेंट ह्यूमन नेचर है ।विश्वास ही हर रिश्ते की नींव होती है ,चाहे वह पर्सनल हो या फिर प्रोफेशनल जैसे कि जब आप किसी को पैसे देते हैं, या किसी से पैसे लेते हैं, या बाजार से किसी ब्रैंड का कोई सामान खरीदे हैं। या बीमार पड़ने पर किसी डॉक्टर के पास इलाज के लिए जाते हैं। तो विश्वास हर जगह काम करता है लेकिन मान लीजिए अगर आप किसी को पैसे उधार दे ,और वह वापस ना लौट आए तो क्या आप उसे फिर कभी उधार देने की बात सोच सकते हैं। या अगर आप किसी ब्रैंड का सामान खरीदें और वह घटिया क्वालिटी का निकले तो क्या आप फिर कभी उसका सामान खरीदेंगे ?शायद बिल्कुल नहीं, यही बात हमें विदुर नीति की इस नियम से पता चलती है कि कभी भी दूसरों पर आंख बंद करके विश्वास नहीं करना चाहिए। खासकर ऐसे लोग जो बिल्कुल भी भरोसे के लायक ना हो बल्कि वह यहां तक कहते हैं। कि अगर कोई व्यक्ति भरोसे के लायक हो तब भी उस पर हद से ज्यादा ट्रस्ट नहीं करना चाहिए ।क्योंकि अगर आप किसी पर जरूरत से ज्यादा ट्रस्ट करते हैं और आगे चलकर कभी आपका ट्रस्ट तोड़ता है तो आप इस चीज को  कर पाएंगे औ कभी आपका ट्रस्ट तोड़ता है तो आप इस चीज को बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे । आपको बहुत दुख

Wednesday, 18 December 2019

गुरुद्वारा शिष्य को दिया ज्ञान

 एक गुरु ने अपने एक शिष्य को भगवान शिव की महिमा के बारे में बताया। शिष्य को समझाया विधि पूर्वक कैसे भगवान शिव की आराधना करनी है ।शिष्य ने गुरु से प्रश्न किया क्या सच में हमें भगवान शिव की आराधना से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। गुरु ने कहा बिल्कुल हमें भगवान शिव की आराधना से भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है। शिष्य को गुरु की बात पर विश्वास तो नहीं हुआ, परंतु शिष्य ने हर रोज भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी।
शिष्य हर रोज भगवान शिव की पूजा करता और शिवलिंग को जल चढ़ा था। वह हर रोज ओम नमः शिवाय का जाप भी करता। वह अपनी तरफ से भगवान शिव को भक्ति से विवश कर रहा था। कि वह उसके सामने प्रकट हो और उसको आशीर्वाद दें ,कुछ दिनों तक तो ऐसे ही चलता रहा परंतु, कुछ दिनों बाद उसको लगा शिवजी नहीं आने वाले और ना ही उनकी पूजा का कोई लाभ उसको मिलने वाला है । बकोई आशीर्वाद नहीं मिलने वाला उसे भगवान शिव पर ही क्रोध आने लगा ,यह सत्य भी है ।श्रीमद भगवत गीता के दूसरे अध्याय  में श्रीकृष्ण बताते हैं इच्छा पूरी ना होने पर क्रोध का जन्म होता है। और यही हुआ शिष्य की इच्छा पूरी नही हुई तो क्रोध का जन्म हुआ, और क्रोध में उसकी बुद्धि भी मारी गई ,उस प्राणी ने यह सोचा भगवान शिव को मजा चख आएगा। वह भगवान शिव को सबक सिखाएगा ।ऐसा करने के लिए भगवान विष्णु की मूर्ति लेकर आया ।
उसने भगवान विष्णु की मूर्ति को भगवान शिव की मूर्ति के ठीक सामने रख दिया। अब उसने भगवान विष्णु की आराधना आरंभ कर दी और यह सब भगवान शिव को मनाने के लिए उसने विष्णु भगवान से कहना शुरू कर दिया ।हे विष्णु जी तुम ही परम परमात्मा हो शिव भगवान नहीं है ।तुम ही सत्य हो और अब जाकर में सच्चे परमात्मा की शरण में आया हूं। अब तक तो मैं गलत भगवान को ही पूजता रहा ।और मैं जानता हूं आप ही मुझे आशीर्वाद देंगे, अब कुछ दिन तक ऐसा करने से तो ,भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिला और ना ही भगवान शिव का अब इच्छा पूरी नहीं हुई और क्रोध और गहरा हो गया ।और इस व्यक्ति की बुद्धि पर बेली का पर्दा और बढ़ गया ।और इस तुच्छ प्राणी नहीं कुछ अगरबत्तियां भगवान विष्णु के आगे चलाएं अगरबत्ती का धुआं फैलना स्वाभाविक था। और वह तो भगवान शिव की मूरत के आगे जाना भी स्वाभाविक था। यह बात इस व्यक्ति को जरा हजम नहीं हुई उसका क्रोध और बढ़ गया। उसने क्या किया अपनी मूर्खता दिखाते हुए भगवान शिव की मूरत की नाक पर ही हाथ रख दिया। और मुरैना को जोर लगाकर खींचने लगा और कहने लगा, शिव असली भगवान के लिए है ।और वह भगवान विष्णु है। ना कि भगवान शिव खबरदार जो तुमने मेरी जुलाई अगरबत्ती की खुशबू को अपनी नाक से महसूस किया ,उसने भगवान शिव की प्रतिमा को
जोर से पकड़ा था, ताकि भगवान शिव इसे ना महसूस कर सकें ,ओर इतनी जोर से दबा रहा था, कि उसकी आंखें बंद होगयी ।कुछ ही समय बाद इस व्यक्ति ने महसूस किया उसने सच की नाक पकड़ी हुई है। ना तो पत्थर की बनी,आंखें खोली तो स्वयं भगवान शिव को अपने सामने पाया ।भगवान शिव को अपने सामने देखकर इस व्यक्ति के पांव के नीचे से जमीन खिसक गई ।उसको कुछ समझ नहीं आया, क्या हो गया है पर एक बात जरूर हुई ,उसको अपनी गलती का एहसास हुआ ।उसको समझ आ गया उसने बहुत बड़ी गलती की है ।भगवान शिव का अपमान करके उसने ज्यादा समय ना गवाया और भगवान शिव के चरणों में पढ़कर  भीख मांगने लगा। और कहने लगा मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई है क्षमा करो महादेव । अपनी गलती का पश्चाताप करके माफी मांगी।