Tuesday, 31 December 2024

कक्षा नियंत्रण के लिए अनुशासन और नियम

 1. समय पर उपस्थिति


सभी छात्रों को समय पर कक्षा में उपस्थित होना आवश्यक है।


देर से आने पर शिक्षक से अनुमति लेनी होगी।



2. चुप्पी बनाए रखना


कक्षा में बिना अनुमति के बात न करें।


शिक्षक के निर्देश का पालन करते समय पूरी तन्मयता से सुनें।



3. सामग्री तैयार रखें


छात्रों को सभी ज़रूरी सामग्री (किताबें, कॉपी, पेन आदि) साथ लानी चाहिए।


बार-बार सामग्री लेने के लिए कक्षा से बाहर जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।



4. शिष्टाचार और आदर


शिक्षक और सहपाठियों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करें।


किसी प्रकार के अपशब्दों या असभ्य व्यवहार की अनुमति नहीं है।



5. हाथ उठाकर अनुमति लें


सवाल पूछने या जवाब देने के लिए पहले हाथ उठाएँ और अनुमति लें।



6. स्थान पर बैठे रहें


अपनी जगह पर शांति से बैठें जब तक कि अन्यथा अनुमति न दी जाए।


अनावश्यक रूप से उठना या घूमना प्रतिबंधित है।



7. मोबाइल और गैजेट्स का उपयोग


कक्षा के दौरान मोबाइल फोन या अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग सख्त वर्जित है।


जरूरत पड़ने पर शिक्षक की अनुमति लें।



8. होमवर्क और असाइनमेंट समय पर जमा करें


सभी कार्य समय पर पूरा करें और जमा करें।


देरी होने पर शिक्षक को पूर्व में सूचित करें।



9. साफ-सफाई बनाए रखें


कक्षा को साफ और व्यवस्थित रखें।


कूड़ा हमेशा कूड़ेदान में डालें।



10. ध्यान से सुनें और सहयोग करें


कक्षा के नियमों और शिक्षक के निर्देशों का पालन करें।


टीम वर्क और समूह कार्यों में सक्रिय योगदान दें।



11. पुरस्कार और सज़ा की व्यवस्था


अनुशासन का पालन करने वाले छात्रों को सराहना या पुरस्कार दिया जाएगा।


नियम तोड़ने वालों को चेतावनी या उचित सज़ा दी जाएगी।

भ्रष्टाचार पर कव्वाली

।।।।।।।।।।-# भ्रष्टाचार पर कव्वाली#-।।।।।।।।।।

दीपावली के शुभ अवसर पर पापा अपने परिवार को दीपावली गिफ्ट आइटम हेतु कव्वाली के माध्यम से संदेश भेजते हैं।

पापा ने अपनी बेटी को फोन घुमाया । 2।और कहा बेटी में देखना चाहता हूं, तुम्हारा मुस्कुराना आज गिफ्ट में क्या लाना है जरा मुझको बताना।

बेटी समझदार थी बेटी ने क्या कहा जरा ध्यान से सुनना।

पापा बेशक बदल गया है जमाना ,पापा बेशक बदल गया है जमाना ।भले ही मेरे लिए महंगा गिफ्ट आइटम मत लाना ।पर सारी दुनिया के पापाओ को यह बतलाना हम बेटियां भी चाहते हैं खिलखिलाना ।कभी कोई पापा अपनी बिटिया को गर्भ में ना मिटाना।

इसके पश्चात पापा ने अपने बेटे को फोन लगाया ,और कहा।

पापा ने अपने बेटे को फोन घुमाया ,पापा ने अपने बेटे को फोन घूम आया ,और कहा ।बेटा आप भी बता दो दीपावली के गिफ्ट आइटम मे क्या है लाना।

तो बेटा ने क्या सुंदर जवाब दिया, जरा ध्यान से समझना।

पापा मेरे लिए गिफ्ट आइटम ना लाना । पर सारी दुनिया के पापाओ को यह समझाना कि आप जिस गद्दी पर बैठे हो उसकी लाज निभाना। कहीं भ्रष्टाचार की लिस्ट में अपना नाम न लिखवाना शायद मेरे लिए गिफ्ट आइटम ना लाना।

इसके पश्चात पापा अपने बूढ़े मां-बाप को फोन लगाकर गिफ्ट आइटम का ग्रह कहते हैं ।तब बूढ़े मां-बाप क्या जवाब देते हैं ,

पापा नेअपनी बूढ़ी मां को फोन घुमाया ।।पापा ने अपनी बूढ़ी मां को फोन घुमाया और कहा मां बाबा से पूछ कर बताना ।,दीपावली का गिफ्ट आइटम क्या है लाना।

तब बूढ़ी मां ने क्या जवाब दिया जरा ध्यान से समझना।

बूढ़ी मां ने कहा बेटा हमारे लिए गिफ्ट आइटम ना लाना ।बेटा हमारे लिए गिफ्ट आइटम ना लाना ।पर सारे पापा ओं को यह समझाना कि जब तक बुढी मांं और दादा जिंदे है कभी आंगन में दीवार ना बनाना। बेझिझक गिफ्ट आइटम ना लाना।

इस प्रकार एक कव्वाली के माध्यम से भ्रष्टाचार कोसमझाया गया है।

Tuesday, 19 November 2024

संत रामपाल जी महाराज

रामपाल जी महाराज एक आध्यात्मिक संत और गुरू हैं, जो सतलोक आश्रम के संस्थापक हैं। उनका उद्देश्य आध्यात्मिक ज्ञान का प्रसार और समाज में एकता, भाईचारा, और सदाचार को प्रोत्साहन देना है। रामपाल जी महाराज संत कबीर साहेब के अनुयायी हैं और उनकी शिक्षाओं के आधार पर अपने प्रवचन देते हैं।

उनके कार्य और शिक्षाएं:

1. सतग्रंथों पर आधारित ज्ञान:
रामपाल जी महाराज वेद, गीता, पुराण, बाइबिल, कुरान और गुरु ग्रंथ साहिब जैसे धार्मिक ग्रंथों को अपने प्रवचनों का आधार बनाते हैं। वे कहते हैं कि इन ग्रंथों में दिए गए सत्य को समझकर ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है।


2. भक्ति और सदाचार का प्रचार:
उनकी शिक्षाओं का मुख्य उद्देश्य भक्ति के माध्यम से आत्मा को परमात्मा से जोड़ना है। वे पवित्र जीवन और सही मार्गदर्शन के महत्व पर जोर देते हैं।


3. सामाजिक सुधार:
रामपाल जी समाज से नशाखोरी, दहेज प्रथा, जातिवाद, और अंधविश्वास जैसी कुरीतियों को मिटाने के लिए प्रयासरत हैं। उनके अनुयायी सरल और नैतिक जीवन जीने का अभ्यास करते हैं।


4. सत्संग और आश्रम संचालन:
सतलोक आश्रम, जिसे वे संचालित करते हैं, उनके प्रवचनों और सामाजिक कार्यों का केंद्र है। यहाँ नियमित रूप से सत्संग, धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या और आध्यात्मिक साधना की शिक्षा दी जाती है।



उनकी शिक्षाओं का मुख्य उद्देश्य:

रामपाल जी महाराज के अनुसार, सभी धर्मों का वास्तविक उद्देश्य ईश्वर की प्राप्ति है, और यह केवल सत्य ज्ञान तथा भक्ति से ही संभव है। उनके अनुयायी उनके दिखाए मार्ग पर चलकर आत्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर होते हैं।

यदि आप रामपाल जी महाराज द्वारा संचालित किसी विशेष पहल, आश्रम, या उनके संदेशों के बारे में और जानकारी चाहते हैं, तो कृपया अधिक स्पष्ट करें।

Sunday, 1 January 2023

युगो की गिनती करना

*इसे  सेव कर सुरक्षित कर लेवे। वाट्सअप पर ऐसी पोस्ट  कम ही आती है।*
विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियो पर किया अनिल अनुसंधान )

■ काष्ठा = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुटि  = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुटि  = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महालय  = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।

*उक्त जानकारी शास्त्रोक्त 📚 आधार पर... हैं ।*
*यह आपको पसंद आया हो तो अपने बन्धुओं को भी शेयर जरूर कर अनुग्रहित अवश्य करें यह संस्कार का कुछ हिस्सा हैं 🌷 💐*जय श्री राम जय श्री कृष्ण

Tuesday, 31 May 2022

मशरूम की उपयोगिता एवं महत्व

मशरूम का महत्व

 कैंसर: यह प्रोस्टैट और स्तन कैंसरसे बचाता है। इसमें बीटा ग्लूकॉन और कंजुगेट लानोलिक एसिड होता है, जो कि कैंसररोधी प्रभाव छोड़ते हैं।

 मधुमेहः इसमें विटामिन, लवणऔर रेशा होता है। मशरूम में वसा, कार्बोहाइड्रेट और शर्करा नहीं होती है, जो कि मधुमेह रोगियों के लिये जानलेवा है। यह शरीर में इन्सुलिन को भी बनाता है।

 हृदय रोग: मशरूम में उच्च पोषण तत्व पाये जाते हैं। इसलिए यह दिल के रोग के लिये अच्छा होता है। इसमें कुछ तरह के एंजाइम और रेशे पाए जाते हैं ये कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करते हैं।

मैटाबॉलिज्मः मशरूम में विटामिन'बी' होता है। यह भोजन में पाये जाने वाले ग्लूकोज को बदल कर ऊर्जा पैदा करता है। विटामिन 'बी' और बी. इस कार्य के लिये उत्तम हैं।

प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा: मशरूम में उपस्थित एंटीऑक्सीडेंट फ्री अवयव से बचाता है। यह शरीर में एंटीवायरल और अन्य प्रोटीन की मात्रा बढ़ाता है। यह कोशिकाओं के पुनः निर्माण में सहायक होता है। यह सूक्ष्मजीवी और अन्य फफूंद संक्रमण को ठीक करता है।

मोटापा कम करने में सहायकः इसमें लीन प्रोटीन होता है। यह मोटापा घटाने में बड़ा योगदान करता है। मोटापा कम करने वालों को प्रोटीनयुक्त भोजन पर रहने को बोला जाता है, जिसमें मशरूमखाना अच्छा माना जाता है।

पोषकीय महत्व

मशरूम में पोषक तत्व अधिकांश सब्जियों की तुलना में अधिक पाये जाते हैं। इसकी खेती पोषकीय एवं औषधीय लाभ के लिये की जाती है, जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है:

  • मशरूम में लगभग 22-35 प्रतिशत उच्च कोटि की प्रोटीन पायी जाती है, जिसकी पाचन शक्ति 60-70 प्रतिशत तक होती है।
  • इसके प्रोटीन में सभी आवश्यक तत्व जैसे-अमीनो अम्ल, मेथियोनिन, ल्यूसिन, आइसोल्यूसिन, लाइसिन, थायमीन, वैलीन, हिस्टीडिन, आर्जीनिन, आदि प्राप्त होते हैं, जो दालों में भी प्रचुर मात्रा में नहीं पाये जाते हैं। इसमें कालवासिन, क्यूनाइड, लेंटीनिन, क्षारीय और अम्लीय प्रोटीन की उपस्थिति मानव शरीर में ट्यूमर बनने से रोकती है।
  • मशरूम में 4-5 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट्स पाये जाते हैं, जिसमें मैनीटाल 0.9, हेमी सेल्यूलोज 0.91 और ग्लाइकोजन 0.5 प्रतिशत विशेष रूप से पाया जाता है।
  • ताजे मशरूम में पर्याप्त मात्रा में रेशे (लगभग 1 प्रतिशत) व कार्बोहाइड्रेट तन्तु होते हैं। यह कब्ज, अपचन, अति अम्लीयता सहित पेट के विभिन्न विकारों को दूर करता है। इसके साथ ही यह शरीर में कोलेस्ट्रॉल एवं शर्करा के अवशोषण को भी कम करता है।
  • इसमें वसा न्यून मात्रा (0.3-0.4 प्रतिशत) में पाई जाती है तथा आवश्यक वसा अम्ल, प्लिनोलिक एसिड प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है। प्रति 100 ग्राम मशरूम से लगभग 35 कि.ग्रा. कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।
  • मशरूम में शर्करा (0.5 प्रतिशत) और स्टार्च की मात्रा अल्प होने के कारण मधुमेह रोगियों के लिये यह एक महत्वपूर्ण आहार माना जाता है।
  • इसमें प्यूरीन, पायरीमिडीन, क्यूनान, टरपेनाइड इत्यादि तत्व होते हैं, जो जीवाणुरोधी क्षमता प्रदान करते हैं।
  • इसमें विटामिन 'ए', 'डी' और 'के' नहीं पाया जाता है, लेकिन एर्गोस्टेरॉल पायाजाता है, जो मानव शरीर के अंदर विटामिन 'डी' में परिवर्तित हो जाता है।
  •  इसमें आवश्यक विटामिन जैसे-थायमीन, राइबोफ्लेविन, नायसीन, बायोटिन, एस्कार्बिकएसिड और पेंटाथोनिक एसिड पाया जाता है।
  • मशरूम में उत्तम स्वास्थ्य के लिए सभी प्रमुख खनिज लवण जैसे- पोटेशियम, फॉस्फोरस, गंधक, कैल्शियम, लोहा, तांबा, आयोडीन और जिंक आदि भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। ये खनिज, अस्थियों, मांसपेशियों, नाड़ी संस्थान की कोशिकाओं तथा शरीर की क्रियाओं में सक्रिय योगदान करते हैं। मशरूम में लौह तत्व कम मात्रा में पाया जाता है फिर भी रक्त में हीमोग्लोबिन के स्तर को बनाये रखता है। इसके साथ ही इसमें बहुमूल्य फोलिक एसिड की उपलब्धता होती है, जो केवल मांसाहारी खाद्य पदार्थों से प्राप्त होता है। अतः लौह तत्व एवं फोलिक एसिड के कारण यह रक्त की कमी से गकस्त अधिकांश ग्रामीण महिलाओं एवं बच्चों के लिये उत्तम आहार है।
  • हृदय रोगियों की आहार योजना में मशरूम को शामिल करना उपयोगी पाया गया है, क्योंकि यह शर्करा एवं कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित कर रक्त संचार को बढ़ाता है।
  • मशरूम गर्भवती महिलाओं, बाल्यावस्था, युवावस्था तथा वृद्धावस्था तक सभी चरणों में कुपोषण से बचाव में अति उपयोगी पाया गया है।
  • इसमें सोडियम वर्षट नहीं पाया जाता है जिसके कारण मोटापा, गुर्दा और हृदयघात से पीड़ित रोगियों के लिये यह महत्वपूर्ण आहार है

Sunday, 26 April 2020

🙏वैष्णो देवी मंदिर की स्थापना कैसे हुई🙏

अचानक एक तूफान की लहर से चीन की वहां से निकल कर आई और उसने देखते ही देखते भारत में तूफान मचा दिया जिससे कोविड-19 वायरस का नाम से जाना गया 

Wednesday, 15 April 2020

🙏🙏🙏कोरोना महामारी में सहयोग 🙏🙏🙏

ग्रीष्म ऋतु में विशाल जंगल में भयानक आग लगी हुई थी। जंगली जीव जंतु आग के मारे परेशान हो रहे थे ।कई जीव जंतु विशाल आग में  जलकर अपने प्राणों की आहुति दे रहे थे ।अर्थात काल के मुख में समा रहे थे ।

ईस टांडव के कारण चारों ओर कोहराम मचा हुआ था। आग पर काबू पाने के लिए सभी व्यक्ति अपने ۔अपने तरीके से प्रयास कर रहे थे ।फायर ब्रिगेड चल रही थी कोई बाल्टी' गुंडीٗ जिसको जैसा साधन मिला उसी से पानी डाल कर आग पर काबू करना चाह रहे थे। यह दृश्य एक नन्ही सी चिड़िया देख रही थीٗ उसने सोचा कि जब इतिहास रच आएगा तब मेरा भी नाम आना चाहिए। इसीलिए उस नन्ही चिड़िया ने भी अपना योगदान देना चाहा ।वह भी इस कार्य में जुट गई नन्ही सी चिड़िया भी अपने चोच में पानी भरती थी और उस आग में छोड़ती थी। इसी प्रकार वह नन्ही चिड़िया भी इस प्रकार कार्य करने लगी। इसी नन्ही चिड़िया की उत्साह और उमँग को देखकर मेरे मन में भी َ!इस ग्रीष्म ऋतु मे” दुनिया रूपी विशाल जंगल में कोरोना रूपी विशाल आग लगी हुई है। इस कोरोना रूपी आग में नन्ही सी चिड़िया के भाती योगदान करने का विचार आया मन रूपी चोच से विचार रूपी पानी का छिड़काव करने की कोशिश कर रहा हूं ।
 ईस प्रकार अभी इस कोरोना महामारी की भयानक आग दुनिया में लगी  है ।    प्रत्येक प्राणी से नम्र निवेदन है  कि उस  चिड़िया की तरह हम भी इसमें सहयोग करें योगदान दें ताकि इतिहास में हमारा नाम भी आए इस छोटी सी कहानी के माध्यम से सरकार द्वारा लाख डाउन अवधि में दिए गए नियमों का पालन करें या करवाएं कृपया अपने घरों में ही रहे सरकार की बार-बार अपील है और  विचार करो कि करोना कोई हंसी मजाक में लेने वाली बीमारी नहीं है यह वास्तव में साक्षात मां दुर्गा का रूप है क्योंकि दुर्गा सप्तशती के अध्याय नंबर 12 और इसलोक नंबर 39-40 में स्पष्ट कहा गया है ।
कि अभ्युदय के समय में ही पृथ्वी पर धन समृद्धि और ऐश्वर्य बरसाती हूं ।और विनाश के समय में ही भयानक रूप लेकर के महामारी के रूप में विनाश करती हूं ।इसी प्रकार यह दुर्गा साक्षात महामारी का रुप ले कर आई है ।इससे बचने के लिए देवी आराधना एवं पूर्ण परमात्मा जो कि मां दुर्गा से भी बड़ा है उनकी आराधना करना ही श्रेष्ठ कर है ।इसे समझने के लिए संत रामपाल जी महाराज की पुस्तकें एवं उनका सत्संग सुनाना आवश्यक है ।तथा उनकी राह पर चलना आवश्यक है

Thursday, 20 February 2020

काल( ब्रह्म) की अव्यक्त (गुप्त )रखने की प्रतिज्ञा

काल (ब्रह्म) की अव्यक्त (गुप्त) रहने की प्रतिज्ञा

ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों पुत्रों की उत्पत्ति के पश्चात काल (ब्रहा) अपनी पत्नी दुर्गा (प्रकृति) से कहा मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि; भविष्य में मैं किसी को अपने वास्तविक रूप में दर्शन नहीं दूंगा। जिस कारण से मैं (गुप्त) अव्यक्त माना जाऊंगा। दुर्गा से कहा कि आप मेरा भेद किसी को मत देना। मैं गुप्त रहूंगा दुर्गा ने पूछा कि क्या आप अपने पुत्रों को भी दर्शन नहीं दोगे? मैं अपने पुत्रों को भी तथा अन्य को किसी भी साधन से दर्शन नहीं दूंगा। यह मेरा अटल नियम रहेगा। दुर्गा ने कहा यह तो आपका उत्तम ज्ञान नहीं है।
जो आप अपने संतान से भी छुपे रहोगे ।तब काल ने कहा दुर्गा मेरी विवशता है। मुझे एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों का आहार करने का श्राप लगा है। यदि मेरे पुत्र ब्रह्मा विष्णु महेश को पता लग जाए ,तो यह उत्पत्ति स्थिति तथा सहार का कार्य नहीं करेंगे। इसीलिए यह मेरा  नियम सदा रहेगा ।जब ये तीनों कुछ बड़े हो जाएंगे ,तो इन्हें अचेत कर देना मेरे विषय में नहीं बताना ।नहीं तो मैं तुझे भी दंड दूंगा। दुर्गा ईस डर के मारे वास्तविकता नहीं बताती, इसीलिए गीता अध्याय नंबर 7 श्लोक नंबर 24 में कहा है। कि यह बुद्धिहीन जनसमुदाय मेरे उत्तम नियम से अपरिचित है। कि मैं कभी भी किसी के सामने प्रकट नहीं होता ,अपनी योग माया से छुपा रहता हूं इसीलिए मुझ अव्यक्त को मनुष्य रूप में आया हुआ अर्थात कृष्ण मानते हैं ।गीता अध्याय नंबर 11 श्लोक नंबर 47 48 में का है कि यह मेरा वास्तविक रूप कॉल रुप है। इसके दर्शन अर्थात ब्रह्म प्राप्ति न वेदों में वर्णित विधि से, न जप से न तब से तथा न किसी क्रिया से हो सकती है ।जब तीनों बच्चे युवा हो जाए तब माता भवानी प्रकृति दुर्गा ने कहा, कि तुम सागर मंथन करो ।
प्रथम बार सागर मंथन किया तो जोत निरंजन ने अपने स्वासो द्वारा चार वेद उत्पन्न की।  उन को गुप्त वाणी द्वारा आज्ञा दी कि सागर में निवास करो। चारों वेद निकले वह ब्रह्मा ने ले लिए, वस्तु लेकर तीनों बच्चे माता के पास आ गए ।तब माता ने कहा कि चारों वेद ब्रह्मा रखे व पड़े ।
नोटः- वास्तव में पूर्ण  ब्रह्म अर्थात काल को पांच वेद प्रदान किए थे ।लेकिन ब्रह्म ने केवल चार वेद को प्रकट किया। पांचवें वेद छुपा दिया जो पूर्ण परमात्मा ने स्वयं प्रकट होकर कबीर अर्थात कबीर वाणी द्वारा लोकोक्तियों व दोहे के माध्यम से प्रकट किया है।
दूसरी बार मंथन किया तो तीन कन्याए मिली माता ने तीनों को बांट दिया। दुर्गा ने अपने ही अन्य तीन रूप सावित्री, लक्ष्मी ,तथा पार्वती धारण किए तथा  समुद्र में छिपा दी ।सागर मंथन के समय बाहर आ गई, वही प्रकृति तीन रूप हुई तथा भगवान ब्रह्मा जी को सावित्री, भगवान विष्णु जी को लक्ष्मी, भगवान शंकर जी को पार्वती रूप में दी ।तीनों ने भोग विलास किया  तीसरी बार सागर मंथन किया तो 14 रत्न ब्रह्मा को तथा अमृत विष्णु को वह देवताओं को मर्द शराब असुरों को तथा विष पदार्थ शिव ने अपने कंठ में ठहराया। यह तो बहुत बाद की बात है जब ब्रह्मा वेद पढ़ने लगे तो पता चला कि कोई सर्व ब्रह्मांड की रचना करने वाला कुल मालिक पुरुष प्रभु और है ।तब ब्रह्मा जी ने विष्णु जी व शंकर जी को बताया कि वेद में वर्णन है, कि सिरजनहार कोई और प्रभु है ।परंतु वेद कहते हैं कि भेद हम भी नहीं जानते उनके लिए संकेत है। कि किसी तत्वदर्शी संत से पूछो
।जब ब्ह्ब्ह्मा पास आया सब वृत्तांत कह सुनाया । माता कह रही थी कि मेरे अतिरिक्त और कोई नहीं है मैं ही करता हूं ।मैं ही सर्वशक्तिमान हूं ,परंतु ब्रह्मा ने कहा कि वेद इस वक्त है यह झूठ नहीं हो सकता। दुर्गा ने कहा कि तेरे पिता तुझे दर्शन नहीं देगा। उसने प्रतिज्ञा की हुई है। तब ब्रह्मा ने कहा माता जी अब आपकी बात पर विश्वास नही हो  रहा है ।मैं उस पुरुष( प्रभु ) का पता लगा कर ही रहूंगा । तब दुर्गा ने कहा कि यदि वह तुझे दर्शन नहीं देगा तो तुम क्या करोगे ब्रह्मा ने कहा कि मैं आपको शक्ल नहीं दिखाऊंगा । दूसरी तरफ जोत निरंजन ने कसम खाई है कि मैं अव्यक्त (गुप्त) रहूंगा। किसी को दर्शन नहीं दूंगा अर्थात 21 ब्रह्मांड में कभी भी आपके अपने वास्तविक (काल) रूप में  मैं नहीं आऊंगा। गीता अध्याय नंबर 7 श्लोक नंबर 24 ,25 में इसका विस्तृत वर्णन हैं।परमात्मा के ईस ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाए और इस गुप्त ज्ञान को समझे और ईस गुप्त ज्ञान को समझें समझाएं अधिक जानकारी के लिए ज्ञान गंगा पुस्तक निशुल्क मंगवा कर पढ़े और समझे या ullekhgyansagarblag.पर सर्च करें ।

Thursday, 26 December 2019

माता दुर्गा द्वारा ब्रह्मा को श्राप देना

माता दुर्गा द्वारा ब्रह्मा को श्राप देना

जब माता ने ब्रह्मा से पूछा क्या तुमने पिता के दर्शन किये? ब्रह्मा ने कहा हां मां मुझे पिता के दर्शन हुए। दुर्गा ने कहा साक्षी बता, तब ब्रह्मा ने कहा इन दोनों के समक्ष दर्शन हुए। देवी दुर्गा ने उन दोनों लड़कियों से पूछा क्या तुम्हारे सामने ब्रह्मा को दर्शन हुए? तब दोनों ने कहा कि हां हमने अपनी आंखों से देखा है। हमारे सामने उन्हें दर्शन हुए ,तब भवानी प्रकृति को संचय हुआ कि मुझे तो ब्रह्म( काल )ने कहा था कि मैं किसी को दर्शन नहीं दूंगा।
चाहे कुछ हो जाए परंतु यह कहते हैं, कि दर्शन हुए तब दुर्गा ने ध्यान लगाकर और कॉल जोत निरंजन से पूछा, कि यह क्या कहानी है। जोत निरंजन ने कहा कि यह तो झूठ बोल रहे हैं ।तब माता ने कहा तुम झूठ बोल रहे हो आकाशवाणी हुई है। कि उन्होंने किसी को दर्शन नहीं दिए यह बात सुनकर ब्रह्मा ने कहा कि माताजी में सोंगध खाकर पिता की तलाश करने गया था। परंतु पिता के दर्शन नहीं हुए आपके पास आने में शर्म लग रही थी। इसलिए हमने झूठ बोल दिया ।तब माता दुर्गा ने कहा कि मैं तुम्हें शराब देती हूं।
 ब्रह्मा को श्राप:- तेरी पूजा जग में नहीं होगी। आगे तेरे वंशज होंगे वे बहुत पाखंड होंगे झूठी बात बनाकर जग्ग ठगी ऊपर से तो कर्मकांड करते दिखाई देंगे ।मगर अंदर से विकार करेंगे कथा पुरानो को पढ़कर सुनाया करेंगे। स्वयं को ज्ञान नहीं होगा की सद ग्रंथों में वास्तविक क्या है। फिर भी मानवास तथा धन प्राप्ति के लिए गुरु बनकर अनुयायियों को लोक वेद शास्त्र विरुद्ध अंत कथा सुनाया करेंगे। देवी देवताओं की पूजा करके तथा करवा के दूसरों की निंदा करके कष्ट पर कष्ट उठाएंगे। जो उनके अनुयाई होंगे उनको परमार्थ नहीं बताएंगे दक्षिणा के लिए जगत को गुमराह करते रहेंगे। अपने आप को सबसे श्रेष्ठ मानेंगे दूसरों को नीचा समझेंगे। जब माता के मुख से यह सुना तो ब्रह्मा मूर्छित होकर जमीन पर गिर गया। बहुत समय उपरांत होश आया।
गायत्री को श्राप:- तेरे इस प्रकार घिनौनी हरकत के कारण तेरे कई बैल पति होंगे। और तू मृत्यु लोक में गाय बनेगी।
सावित्री को श्राप:- तेरी जगह गंदगी में होगी ।तेरे फूलों को कोई पूजा में नहीं लेगा। इसी झूठी गवाही के कारण तुझे यह नरक भोगना पड़ेगा। तेरा नाम कीवडा केतकी होगा हरियाणा में कुसौंधी कहते हैं। यह गंदगी को ऑडियो वाली जगह में होती है।
इस प्रकार तीनों को श्राप देकर माता भवानी दुर्गा बहुत पछताई। इस प्रकार पहले तो जीव बिना सोचे मन काल (निरंजन) के प्रभाव से गलत कार्य कर देता है। परंतु जब शरद पूर्व सांसद के प्रभाव से उसे ज्ञात होता है तो पीछे पछताना पड़ता है। जिस प्रकार माता पिता अपने बच्चों को छोटी सी गलती के कारण  क्रोध वश होकर, परंतु बाद में बहुत पछताते हैं। यही प्रक्रिया मन काल (निरंजन) के प्रभाव से सर्व जीवो में क्रिया वान हो रही है। हां एक बात विशेष है कि निरंजन काल ब्रह्म ने भी अपना कानून बना रखा है। कि यदि कोई जीव किसी दुर्बल जीव को सताएगा तो उसे उसका बदला देना पड़ेगा। जब आदि भवानी दुर्गा ने ब्रह्म गायत्री व सावित्री को श्राप दिया तो (अलख निरंजन) काल ब्रह्म ने कहा कि यह दुर्ग यह आपने अच्छा नहीं किया। अब मैं निरंजन आप को श्राप देता हूं। कि द्वापर युग में तेरे भी पांच पति होगी अर्थात द्रोपति ही आदि माया का अवतार होगी। जब यह आकाशवाणी सुनी तो आदि माया ने कहा जोत निरंजन काल मैं तेरे बस में पड़ी हूं ।जो चाहे सो कर ले।
सृष्टि रचना में दुर्गा जी के अन्य नामों का बार-बार लिखने में का उद्देश्य है। कि पुराना गीत आदत है वेदों में प्रमाण देखते समय भर्म उत्पन्न नहीं होगा। जब जैसे गीता अध्याय नंबर 14 लोक नंबर 34 में काल ब्रह्म ने कहा कि प्रकृति तो गर्भधारण करने वाली सब जीवो की माता है। मैं उसके गर्भ में बीज स्थापित करने वाला पिता हूं। ईसलोक 4 में कहा गया है। कि प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुण जीवात्मा को कर्मों के बंधन में बांधते हैं। इस प्रकार में प्रकृति तो दुर्गा है। तथा तीनों गुण तीनों देवता यानी रज गुण ब्रह्मा, सद्ग गुण  विष्णु ,तम गुण शिव के सांकेतिक नाम है।